June 26th, 2014
कुछ न कुछ तो उसके मेरे दरमियाँ बाक़ी रहा
चोट बेशक भर गई लेकिन निशां बाक़ी रहा
गाँव भर की धूप को हँसकर उठा लेता था जो
कट गया पीपल वही तो क्या वहाँ बाक़ी रहा
आग से बस्ती जला डाली मगर हैरत है ये
किस तरह बस्ती में मुखिया का मकां बाक़ी रहा
ख़ुश न हो उपलब्धियों पर यह भी तो पड़ताल कर
नाम है, शोहरत भी है, पर तू कहाँ बाक़ी रहा
वक्त क़ी इस धुँध में सारे सिकन्दर खो गए
ये ज़मीं बाक़ी रही, ये आसमां बाक़ी रहा